पेड़ों की हो रही अंधाधुंध कटाई रुकवाने को लेकर SDM को वन एवं पर्यावरण मंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन
अलवर (राजस्थान) बढ़ती जनसंख्या, परिवहन के साधनों में जीवाश्म ईंधन के अत्याधिक उपयोग, औद्यौगिक इकाईयों से निकलते धुएं, जगह-जगह फैलते प्लास्टिक के टुकडे व घरेलू कचरे तथा पेड़ों के हो रहे बेतहाशा कटान से एक तरफ़ श्वांस लेने योग्य शुद्ध हवा की कमी महसूस की जा रही है, वहीं बढ़ते प्रदूषण ने ग्लोबल वार्मिंग की समस्या भयावह रूप अख्तियार कर चुकी है। दैनंदिन पीने के शुद्ध पानी की बढ़ती समस्या से स्थिति और विकराल हो गयी है। इससे आमजन का जीना दूभर हो गया है। बीते माह इसके जीते-जागते सबूत के साथ वर्तमान परिस्थितियों से यह समझा जा सकता हैं। वन वनस्पति एवं वन्यजीव अभयारण्य बचाओ अभियान राजस्थान के संयोजक राम भरोस मीणा ने श्री कृष्ण शिक्षा एवं ग्रामीण विकास समिति के सचिव सुनील कुमार शर्मा के संयुक्त तत्वावधान में उप खण्ड अधिकारी को वन एवं पर्यावरण मंत्री के नाम ज्ञापन देकर बताया कि वर्तमान में कृषि भूमि, सवाईचक, गोचरान, नदी नालों के किनारों से हो रही पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से सभी भली भाँति परिचित हैं। इस स्थिति को झुठलाया नहीं जा सकता। आये-दिन ट्रैक्टर-ट्रालियों और ट्रकों पर लगे कटे पेडो़ं के गठ्ठर आम देखे जा सकते हैं।आरा मशीनों पर पड़ हरे कटे पेड़ों के ढेरों से इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। इस संदर्भ में मात्र कोटपुतली बहरोड़ जिले में ही औसतन 30 से 35 ट्रैक्टर रोजाना हरे कटे पेड़ों के लोड होते हैं, वहीं अकेले नारायणपुर में ही इस वक्त 50 से 60 पेड़ प्रति काटे जा रहे हैं। ये हालात पर्यावरण और पारिस्थितिकी के सर्वनाश के प्रतीक हैं। इस पर विचार किया जाना बेहद जरूरी है।
पेड़ों की अत्यधिक कटाई व उनके अवैध व्यापार से जंगलों पर दिनों- दिन दबाव बढ़ता जा रहा है जिसके चलते वन सम्पदा नष्ट होने के कगार पर पहुंच चुकी है। मौजूदा हालात गवाह हैं कि अब जंगलों में विलायती बबूल के अलावा वन सम्पदा दिखाई नहीं देती है। दूसरी तरफ वन्य जीवों के आवास खत्म होते जाने से उनका जंगलों में रहना मुश्किल हो रहा है। यहीं नहीं पेड़ों के कटान से वर्षा पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसका प्रमाण वर्तमान में सरिस्का, थानागाजी, नारायणपुर, कोटपुतली में हुईं वर्षा का औसत है देख कर समझा जा सकता है, जहां जंगल है वहीं वर्षा अधिक हुईं है और जहां जंगल साफ हो गये हैं वहां वर्षा कम हुयी है। आज कोटपुतली बहरोड़ जिले का अधिकांश इलाका डार्क जोन बन चुका है, वहीं ग्राउंड वाटर का दोहन भी सीमा पार कर गया है। भूजल के अत्याधिक दोहन से गिरता जलस्तर इसका सबसे बड़ा कारण है। वर्तमान परिस्थितियों से निजात पाने के लिए सर्वाधिक वृक्षारोपण के साथ पेड़ों की कटाई को रोकना बेहद जरूरी है। आगामी समय में उत्पन्न होने वाली भयानक स्थितियों से निपटने के लिए जंगलों को बढ़ावा देना होगा, जिससे बड़ते तापघात, पर्यावरण प्रदूषण, आक्सीजन की कमी,गहराते जल संकट तथा बदलते पारिस्थितिकी तंत्र को बचाया जा सके। साथ ही आपदाओं से निपटने में भी सफलता मिल सकें।