शीतला माता की आराधना का पावन पर्व है थदड़ी: सिंधी और पुष्करणा ब्राह्मण समाज में इसका खासा महत्व

Aug 25, 2024 - 13:03
Aug 25, 2024 - 15:18
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शीतला माता की आराधना का पावन पर्व है थदड़ी:   सिंधी और पुष्करणा ब्राह्मण समाज में इसका खासा महत्व

खैरथल (हीरालाल भूरानी ) थदड़ी सिंधी समाज का पवित्र पावन पर्व है। सिंध प्रदेश के हिंदू समुदाय में इस दिन का खासा महत्व होता है। देश विभाजन के बाद भी सिंध के हिंदू सनुदाय ने अपनी संस्कृति और परंपराओं को सहेज कर रखा हुआ है। वर्तमान में सिंधी समुदाय के साथ ही पुष्करणा ब्राह्मण समाज भी थदड़ी को उत्साहपूर्वक मनाता है। इस बार थदड़ी का पर्व परंपरागत रूप और भक्तिभाव के साथ 25 अगस्त 2024 को मनाया जा रहा है।
शीतला सप्तमी के समान ही यह पर्व भी शीतला माता की पूजा अराधना कर मनाया जाता है। जिस तरह प्रत्येक समाज के अपने कुछ खास पर्व होते हैं इसी प्रकार सिंधी समाज का विशेष पर्व है थदड़ी। इस पर्व को उत्साह, उमंग और खुशियों के साथ रक्षाबंधन के आठवें दिन सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। बासोड़ा की तरह ही इस पर्व पर समूचा सिधी समाज एक दिन पूर्व का बना हुआ ठंडा खाना परिवार सहित शीतला माता की आराधना करते हुए प्रसाद के रूप में ग्रहण करता है। मान्यता है कि आज से 11 हजार वर्ष पूर्व मोहनजोदड़ो की खुदाई में माता शीतला माता देवी जी प्रतिमा निकली थी, उन्हीं की आराधना में यह पर्व सिंधी समाज मनाता है। सावण माई सतायें आयी भरी छोलीयु दे। जेहड़ी सच्ची शीतला ओढो मु करे।।
इस प्रकार परंपरागत धार्मिक गीत गाते हुए आज के दिन महिलाएं शीतला माता की पूजा करती है और परिवार पर विशेष कर बच्चो पर शीतला माता की कृपा के लिए किसी जलस्त्रोत की पूजा करती है। पुराने जमाने में यह पूजा तालाब, नदी, कुएं आदि पर की जाती थी। लेकिन समय के साथ इसमें कुछ बदलाव आ गया। अब शहरों में कुएं, तालाब, पवित्र नदी नाले नहीं रहे तो अब एक थाल में पानी भरकर इसको जलस्त्रोत मान कर घर मे ही थदड़ी पूजी जाती है। सावन मास के बाद का सिंधी समुदाय का यह सबसे बड़ा त्योहार है। आज के दिन पूरे दिन ठंडा खाया जाता है। थदड़ी से एक दिन पहले खूब सारे व्यंजन बना लिये जाते हैं। इस दिन ठंडा ही खाया जाता है। चूल्हा पूरे दिन नहीं जलाया जाता। शीतला माता को प्रार्थना करते हुए एक दिन पूर्व घर की महिलाएं थदड़ी के भोजन व माता के भोग के लिए विभिन्न तरह के व्यंजन जैसे खोराक, मिठी टिक्की, मिठो लोलो, सतपुड़ा, पोप, नानखटाई, सुखी तली हुई सब्जियां, करेला, भिंडी, रायता, खट्टले भत्त, दही बड़े, मक्खन बड़े आदि बनाती है। आटे में शक्कर की चाशनी डालकर आटा गूंदा जाता है फिर उस आटे से कुपर बनाए जाते हैं।

रात्रि को भोजन तैयार किया जाता है और उसके बाद चूल्हे पर जल डालकर ठंडा करके हाथ जोड़कर पूजा की जाती हैं। दूसरे दिन परिवार और मोहल्ले की महिलाएं समूह में अपने अपने घरों अथवा नजदीक के किसी ब्राह्मण के घर पर शीतला माता की पूजा करती है। इसके बाद पूजन के जल के छींटें घर पर व सदस्यों को लगाती है। इसकेपीछे धारणा है कि शीतला माता इस पूजा से प्रसन्न होकर परिवार और बच्चों पर कृपा करती है जिससे चेचक जैसी बीमारियों नहीं आती तथा मनुष्य क्रोध, तनाव इत्यादि से दूर रहता है। पूजा पाठ के बाद परिवार भोग लगाएं हुए ठंडे भोजन को ग्रहण करता है। संध्या के समय परिवार के लोग शीतला माता और वरूण देव से घर, परिवार, देश, दुनिया की खुशहाली की प्रार्थना कर बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद लेकर अगले दिन श्रीकृष्ण जन्माष्टनी की तैयारियों के लिए जुट जाते हैं। आप सभी को थदड़ो के इस पावन दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। शीतला माता आप सभी देशवासियों पर अपनी कृपा बनाए रखे।

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