टीबी मरीजो के साथ सामाजिक लगाव बहुत जरूर - डॉ गौरव मीना

पत्थरों का काम करने वाले मजदूरों के साथ एक युद्ध टीबी के विरुद्ध कार्यक्रम , पोषण किटो का किया गया वितरण

Mar 25, 2021 - 02:01
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टीबी मरीजो के साथ सामाजिक लगाव बहुत जरूर - डॉ गौरव मीना

भुसावर (भरतपुर,राजस्थान/रामचंद्र सैनी) लुपिन ओर मंजरी फाउंडेशन के द्वारा आज विश्व क्षय रोग दिवस के अवसर पर सरमथुरा स्टोन कम्पनी के मजदूरों के साथ एक युद्ध टीबी के विरूद्ध कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर  चिकित्सक डॉ गौरव मीना जी ने क्षय रोग से बचाव करने के उपाय व इससे होने वाले दुष्प्रभावों के वारे में जानकारी देते हुये कहा कि टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक टीबी का इंफेक्शन भारत में सबसे ज्यादा जानलेवा है। साल 2019 में टीबी के कारण 4.45 लाख से अधिक लोगों की मौत भारत में हुई थी। जो वैश्विक मृत्यु दर का 31 प्रतिशत है। पिछले साल 2020 में, यह अनुमान लगाया जाता है कि एक करोड़ से अधिक लोग विश्व स्तर पर टीबी से संक्रमित थे, जिनमें से 26 फीसदी या 26 लाख भारत में होने का अनुमान लगाया गया था। विश्व टीबी दिवस 2021 का थीम 'द क्लॉक द टिकिंग' है। जिसका मतलब है कि दुनियाभर के देश टीबी दिवस 2021 का थीम को साफ शब्दों में कहें तो इसके रोकथाम के लिए जल्दी और निर्णायक कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने टीबी की बीमारी के लक्षणों के बारे में बताते हुए कहा कि 2 सप्ताह से ज्यादा की खांसी, वजन कम होना, रात को सोते समय बुखार और पसीने आना, भूख न लगना, खाँसी के साथ खून या बलगम आना आदि टीबी के लक्षण होते है। अगर यह लक्षण जब भी दिखाई दे हमे तुरंत पास के सरकारी अस्पताल में समपर्क करना चाहिए। उन्होंने टीबी की बीमारी की भयावहता के बारे में बताते हुए कहा कि प्रतिदिन इस इस बीमारी की वजह से लगभग 900 से ज्यादा मौते हमारे देश मे होती है। उन्होंने इन मौतों के कारण के बारे में बताते हुए कहा कि जानकारी का अभाव, समय पर इलाज न लेना, इलाज का पूरा नही लेना, नीम हकीम के चक्कर मे पड़ना, आदि कारण है। उन्होंने कहा एक टीबी का मरीज एक साल में 15 ओर  स्वस्थ लोगो को बीमार कर सकता है। उन्होंने कहा कि यह बीमारी लाइलाज नही है। संशोधित राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम के तहत इस बीमारी की जांच और इलाज बिल्कुल निशुल्क है। उन्होंने डॉट्स के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस पद्धति से टीबी का इलाज पूरी तरह से सम्भव है। उन्होंने कहा कि जागरूक होना और समय से पूरी दवाई लेने से यह बीमारी बिल्कुल सही हो जाती है। उन्होंने कहा कि खुले मुँह से खाँसनाओर छींकना न चाहिए। मुह पर  साफ कपडा रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमे टीबी मरीजो से दूरी बनाने की जगह पर उनका साथ देना चाहिए और इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि वो अपना इलाज पूरा करे। बीच मे इलाज छोड़ देने से यह बीमारी और बढ जाती है और जीवन को खतरा पैदा हो जाता है। उन्होंने निश्चय पोषण योजना के बारे में जानकारी दी। पुरुषों को भी इसके भेदभाव से बख्शा नहीं गया है। कुछ मरीज़ों को अपनी नौकरी खोनी पड़ी, तो कुछ पुरुषों को अपनी बीमारी की बात छुपाकर रखनी पड़ती थी क्योंकि उन्हें डर था कि इसके बारे में पता चलने पर कुछ बुरा ना हो जाए। महिलाओं को अपने परिवार और समाज में स्वीकार ना किये जाने का डर होता है, तो पुरुषों को भी अपने परिवार और समाज में भेदभाव का शिकार बनना पड़ता है। बस, वो इसके बारे में किसी को बता नहीं पाते हैं। इस मौके पर उपस्थित लुपिन के जितेन्द्र शर्मा ने कहा भारत में जब भी किसी महिला या पुरुष को टीबी की बीमारी होती है, तो उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल जाती है। इसके बाद शुरु होता है एक अजीब सा अकेलापन, जहां उन्हें अपनी बीमारी के कारण चुप रहने के लिए मजबूर कर दिया जाता है।एक टीबी मरीज़ को भेदभाव से भरी ज़िंदगी नहीं मिलनी चाहिए। उन्हें पूरी तरह से ठीक होने के लिए समाज में स्वीकार करने और अपने आसपास के लोगों की मदद की जानी चाहिए। इस भेदभाव के मुद्दे को हल किये बिना टीबी के खिलाफ हमारी लड़ाई अधूरी रहेगी और भारत से टीबी मिटाने का लक्ष्य कभी पूरा नहीं हो सकेगा। इस मौके पर विष्णुदयाल जी, सतीश चन्द्र गर्ग, सुनील गर्ग जी, एवं सरमथुरा स्टोन कंपनी के सभी कर्मचारी उपस्थित थे। इस कार्यक्रम के दौरान मजदूरों को पोषण किट का भी वितरण किया गया।

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