क्यों मनाते हैं, ईद-उल-अजहा का त्योहार

लक्ष्मणगढ़ (अलवर) कमलेश जैन
बकरीद मुसलमानों का एक बहुत बड़ा त्योहार है, जिसे ईद-उल-अजहा या कुर्बानी की ईद के नाम से जाना जाता है। यह 7 जून शनिवार को मनाया जाएगा । यहत्योहार मुस्लिम समाज में बहुत श्रद्धा और भाईचारे के साथ मनाया जाता है।
बकरीद सिखाती है कि त्याग, ईमान और इंसानियत के रास्ते पर चलकर अल्लाह की राह में खुद को समर्पित करना ही अल्लाह के प्रति असली श्रद्धा भक्ति है।
इस दिन मुसलमान कुर्बानी देकर उस ऐतिहासिक घटना को याद करते हैं, जब पैगंबर इब्राहीम ने अल्लाह की आज्ञा का पालन करते हुए अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया था। बकरीद पर नमाज अदा की जाती है, खास पकवान बनाए जाते हैं। और कुर्बानी के जरिए समाज में जरूरतमंदों की मदद की जाती है। यह त्योहार हर इंसान को यह याद दिलाता है कि सच्चा धर्म वही है, जिसमें दूसरों की भलाई और परोपकार शामिल हो। इसलिए बकरीद सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि एक सोच और जीवनशैली है जो इंसान को बेहतर बनाती है।
बकरीद क्यों मनाई जाती है?बकरीद का सीधा संबंध पैगंबर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की उस परीक्षा से है, जिसमें उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की कुर्बानी देने का फैसला किया था।
कैसे मनाई जाती है बकरीद
1. ईद की नमाज सुबह-सुबह लोग नए कपड़े पहनकर ईदगाह या मस्जिद में नमाज पढ़ने जाते हैं। ये नमाज आम दिनों की नमाज से थोड़ी अलग होती है और इसके बाद इमाम एक छोटा सा खुतबा (भाषण) देते हैं।
2. कुर्बानी नमाज के बाद कुर्बानी की रस्म अदा की जाती है। इसके तहत बकरी, दुम्बा, भैंस या ऊंट की कुर्बानी की जाती है. इसका मकसद इब्राहीम की भक्ति और त्याग की याद को ताजा करना है.
3. गोश्त का बंटवारा कुर्बानी के जानवर का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है- एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है। एक हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों को दिया जाता है।एक हिस्सा खुद के लिए रखा जाता है। इसका मकसद समाज में भाईचारा, मदद और समानता का भाव फैलाना है।
बकरीद का महत्व बकरीद सिर्फ कुर्बानी देने का नाम नहीं है।इसका मतलब है अपनी इच्छाओं की कुर्बानी देना, ईमान की परीक्षा में खरे उतरना, और सच्ची नीयत और इंसानियत के साथ जिंदगी जीना यह त्योहार सिखाता है कि किसी भी हाल में अल्लाह के आदेशों पर भरोसा रखना चाहिए और जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए।






