साइकिल दिवस पर विशेष, आम जन की सवारी है , साइकिल
लक्ष्मणगढ़ (अलवर ) शहरों में मोटरसाइकिल का शौक बढ़ गया है।वही कस्बे एवं गांवों में भी बदलावआ चुका है। इसके बावजूद साइकिल की अहमियत खत्म नहीं हुई है। साइकिल यातायात व्यवस्था का अनिवार्य हिस्सा रही है। पहले के जमाने में जिसके पास साइकिल होती थी वह बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति माना जाता था।
आर्थिक तरक्की में साइकिल की रही है अहम भूमिका -----
गांवों में किसान मंडियों तक सब्जी और दूसरी फसलों को साइकिल से ही ले जाते थे। दूध की सप्लाई गांवों से पास से कस्बाई बाजारों तक साइकिल के जरिए ही होती थी। डाक विभाग का तो पूरा तंत्र ही साइकिल के बूते चलता था।
अब तो विभिन्न प्रकार के गियर वाली ई कीमती साइकिलें बाजार में आ गई है। पहले लोगों के पास सामान्य साइकिल ही हुआ करती थी। जिनके पीछे एक कैरियर लगा रहता था। जिस पर व्यक्ति अपना सामान रख लेता था।
साइकिल से वातावरण में किसी तरह का प्रदूषण नहीं होता पेट्रोल डलवाने का झंझट भी नहीं । साइकिल उठाई पैडल मारे और पहुंच गए अगले स्थान पर।
साइकिल जैसे पर्यावरण- हितैषी वाहन को आज नजरअंदाज किया जा रहा है। जबकि शहरी व ग्रामीण परिवहन में भी साइकिल का महत्वपूर्ण स्थान है। खासतौर से कम आय-वर्ग के लोगों के लिए साइकिल उनके जीविकोपार्जन का एक सस्ता, सुलभ और जरूरी साधन है। वही शारीरिक विकास के लिए भी साइकिल अहम भूमिका निभाती है। सरकार साइकिल परिवहन व्यवस्था में कुछ जरूरी मूलभूत सुधार करके आम और खास लोगों को साइकिल चलाने के लिए प्रेरित कर सकती है। इस कदम से ऐसे सभी लोग प्रेरणा पा सकते हैं। जिनकी प्रतिदिन औसत यातायात दूरी पांच-सात किलोमीटर के आसपास बैठती हैं।राज्य सरकार अपने स्कूली छात्र-छात्राओं को बड़ी संख्या में साइकिल वितरण कर रही हैं। जिससे साइकिल सवारों की संख्या में वृद्धि हुई है।
अब समय आ गया है कि शहर एवं गांवों में साइकिल चलन को एक बड़े स्तर पर प्रोत्साहन देने का, ताकि बढ़ते प्रदूषण को कुछ हद तक रोका जा सके।
हमें साइकिल दिवस आज के दिन मन ही मन इस बात का संकल्प लेना चाहिए कि हम हमारे रोजमर्रा के काम साईकिल से पूरा करेगें, तभी सही मायने में साइकिल दिवस मनाना सफल हो पाएगा।