निर्वाण लाड़ू चढ़ाकर मनाया भगवान ऋषभदेव का मोक्ष कल्याणक
लक्ष्मणगढ़ (अलवर/ कमलेश जैन) जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) का मोक्षकल्याणक पर्व स्थानीय आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में धर्मावलंबियों ने मंगलवार को निर्वाण लाडू चढ़ाकर मनाया। इस दौरान समाज के मंदिर में भगवान ऋषभदेव का अभिषेक, पूजन एवं भक्तामर विधान संपन्ना हुआ। वहीं शाम को दीपों से आराधना कर आरती की गई। इस दौरान बड़ी संख्या में महिलाएं एवं पुरूष उपस्थित थे।मोंटू जैन ने बताया कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को जन्म से ही संपूर्ण शास्त्रों का ज्ञान था। उन्हें ऋषभनाथ, ऋषभदेव, आदिब्रह्मा, पुरुदेव, आदिनाथ और वृषभदेव भी कहा जाता है। वे समस्त कलाओं के ज्ञाता और सरस्वती के स्वामी थे। युवा होने पर कच्छ और महाकच्छ की दो बहनों नंदा और सुनंदा से ऋषभनाथ का विवाह हुआ था। नंदा ने भरत को जन्म दिया, जो आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट बने। उन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा। आदिनाथ ऋषभनाथ सौ पुत्रों और ब्राह्मी तथा सुंदरी नामक दो पुत्रियों के पिता बने। भगवान ऋषभनाथ ने ही विवाह-संस्था की शुरुआत की और प्रजा को पहले-पहले सैनिक कार्य, लेखन कार्य, कृषि, विद्या, शिल्प और वाणिज्य-व्यापार के लिए प्रेरित किया। समाज की मंजू जैन ने बताया कि इसके पूर्व तक प्रजा की सभी जरूरतों को कल्प वृक्ष पूरा करते थे। ऋषभदेव का सूत्र वाक्य था, कृषि करो या ऋषि बनो।