रूहानी आनंद का अनुपम उत्सव : निरंकारी संत समागम संत प्रवृत्ति से ही जीवन का कल्याण संभव - सतगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज

Jan 30, 2024 - 14:52
Jan 30, 2024 - 15:13
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रूहानी आनंद का अनुपम उत्सव : निरंकारी संत समागम  संत प्रवृत्ति से ही जीवन का कल्याण संभव - सतगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज

   खैरथल ( हीरालाल भूरानी ) “जीवन में सन्तों का संग करना अत्यंत आवश्यक है | संत प्रवृत्ति से ही जीवन की वास्तविक सुंदरता है और उससे युक्त होकर ही सहज रूप में ही कल्याण की ओर बढ़ा जा सकता है |” यह शुभाशीष निरंकारी सतगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज ने महाराष्ट्र के 57वें निरंकारी संत समागम के अवसर पर विशाल मानव परिवार को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए |

सतगुरू माता जी ने जीवन की सार्थकता को समझाते हुए कहा कि संसार में सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही प्रकार की प्रवृत्तियां विद्यमान हैं जिसका चुनाव हमें अपने विवेक से स्वयं ही करना होता है | ब्रह्मज्ञान हमें विवेकशील दृष्टिकोण प्रदान करता है जिसको अपनाकर हम सकारात्मक भाव से एक भक्ति भरा जीवन जीते चले जाते हैं। सन्तों की दिव्य वाणी से  हमारे मन मे व्याप्त अहंकार, क्रोध, लोभ सहज रूप में अलोप हो जाते हैं | जिस प्रकार उबलते हुए पानी में हम अपना चेहरा नहीं देख सकते ठीक उसी प्रकार मन में क्रोध, अहंकार एवं स्वार्थ के भाव होने पर जीवन में कुछ भी स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देता |

 इसी क्रम मे अलवर जिले से नागपुर संत समागम पहुंचे श्रद्धांलुओं ने भी इस सुकून मयी रूहानी संत समागम का भरपूर आनंद लिया ओर सतगुरु के पावन आशीर्वाचनों की अमृत वर्षा मे स्वयं को भिगोया।देशभर से आये हुए सभी श्रद्धालु बिना किसी भेदभाव के एक ही पंक्ति में बैठकर लंगर ग्रहण कर रहे हैं जिसे देखकर अनेकता में एकता तथा बंधुत्व भाव का एक सुंदर उदाहरण देखने को मिल रहा है |

संत समागम में निरंकारी राजपिता रमित जी ने अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि सतगुरू ने ब्रह्मज्ञान द्वारा नश्वर और शाश्वत की पहचान कराई है, सत्य और माया को अलग-अलग करके दर्शाया है | सत्य वही है जो सदैव कायम-दायम है और इस सत्य को प्राप्त करने से ही जीवन में वास्तविक सुकून आ सकता है | सुकून की परम अवस्था परमात्मा को पाना ही है | इसके अभाव में स्थायी रूप में सुकून प्राप्त करना संभव नहीं | इस एक परमात्मा को जानकर, इससे इकमिक होकर ही हर पल में सुकून प्राप्त हो जाता है | अपनी इच्छा को प्रभु इच्छा में सम्मिलित करने से जीवन में शुकराने का भाव आता जिससे सुकून का अनुभव होता है |

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