श्राद्ध के लिए महापर्व है सर्वपितृ अमावस्या, 2 अक्टूबर को पितृ पक्ष का समापन
लक्ष्मणगढ़ (अलवर / कमलेश जैन) श्राद्ध महालय' पर्व संपन्नता की ओर बढ़ रहा है। और 2 अक्टूबर अमावस्या को पितृ विसर्जन के साथ ही यह पर्व संपन्न भी हो जाएगा। योग शिक्षक पंडित लोकेश कुमार के अनुसार पौराणिक मान्यतों के अनुसार पितृ विसर्जन के दिन ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध-तर्पण करके उनका पूर्ण आशीर्वाद लिया जा सकता है। श्राद्ध पर्व परमेश्वर की ही रची हुई माया का एक अंश है। जिसके द्वारा वे सभी प्राणियों के साथ अपना कौतुक करते हैं। ये सभी प्राणियों को अपने शरीर से ही प्रकट करते हैं और पुनः अपने में ही विलीन कर लेते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक के कालखंड को ही जीवन कहा गया है। जिसको जीव चौराखी लाख योनियों में अपने कर्मों के अनुसार अलग-अलग भोगता है। जन्म लेने के बाद भी जो परमेश्वर को याद रखते हैं वे कालान्तर में पुनः उन्हीं में विलीन हो जाते हैं और जो मार्ग से भटक जाते हैं उन्हें सभी योनियों में पुनः पुनः जन्म लेना ही पड़ता है। जिस प्रकार यात्रा करते समय मार्ग का सही पता न होने के कारण हम मार्ग भूलकर आगे निकल जाते हैं और किसी और से रास्ता पूछकर वापस लौटते हैं। ठीक उसी प्रकार ये जीवन यात्रा भी है।
सभी तिथियों में आश्विन माह कृष्ण-पक्ष की अमावस्या जिसे हम पितृ विसर्जन भी कहते हैं इस तिथि को सब तिथियों की स्वामिनी माना गया है। जिसमें स्वजनों की मृत्यु तिथि ज्ञात न होने पर भी तीर्थों में पिंड दान करके उन्हें मोक्ष मार्ग तक पहुंचाया केवल अमावस्या को ही पिंड दान, श्राद्ध-तर्पण करके सभी बीते चौदह दिनों का पुन्य प्राप्त करते हुए अपने पितरों को तृप्त कर सकतें हैं। तभी से प्रत्येक माह की अमावस्या तिथि को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है और यह तिथि सर्वपितृ श्राद्ध के रूप में भी मनाई जाती है।