दुर्लभ जैन ग्रंथ एवं शास्त्रों की रक्षा का महापर्व श्रुत पंचमी 01 जून को

लक्ष्मणगढ़ (अलवर/ कमलेश जैन) जैन धर्म में श्रुत पंचमी, ज्ञान और शिक्षा का सम्मान करने के लिए मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। जैन धर्म में ज्येष्ठ माह, शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को 'श्रुत पंचमी' ज्ञान पंचमी का पर्व मनाया गया।
आज के दिन भगवान महावीर के दर्शन को पहली बार लिखित ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत किया गया था। पहले भगवान महावीर केवल उपदेश देते थे। और उनके प्रमुख शिष्य (गणधर) उसे सभी को समझाते थे, क्योंकि तब महावीर की वाणी को लिखने की परंपरा नहीं थी। उसे सुनकर ही स्मरण किया जाता था इसीलिए उसका नाम 'श्रुत' था।
जैन समाज में आज के दिन का विशेष महत्व है। इस दिन पहली बार जैन धर्मग्रंथ लिखा गया था। भगवान महावीर ने जो ज्ञान दिया, उसे श्रुत परंपरा के अंतर्गत अनेक आचार्यों ने जीवित रखा। गुजरात के गिरनार पर्वत की चन्द्र गुफा में धरसेनाचार्य ने पुष्पदंत एवं भूतबलि मुनियों को सैद्धांतिक देशना दी जिसे सुनने के बाद मुनियों ने एक ग्रंथ रचकर ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को प्रस्तुत किया। इस शुभ मंगलमयी अवसर पर अनेक देवी-देवताओं ने णमोकार महामंत्र से ‘षटखंडागम’ की पूजा की थी। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इस दिन से श्रुत परंपरा को लिपिबद्ध परंपरा के रूप में प्रारंभ किया गया। इसीलिए यह दिवस श्रुत पंचमी के नाम से जाना जाता है। इसका एक अन्य नाम ‘प्राकृत भाषा दिवस’ भी है।
श्रुत पंचमी के पावन पर्व पर आज जैन धर्मावलंबी ने कस्बे स्थित जैन मंदिर में प्राकृत, संस्कृत, प्राचीन भाषाओं में हस्तलिखित प्राचीन मूल शास्त्रों को शास्त्र भंडार से बाहर निकालकर, शास्त्र-भंडारों की साफ-सफाई की, प्राचीनतम शास्त्रों की सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें नए वस्त्रों में लपेटकर सुरक्षित किया गया। तथा जिनवाणी ग्रंथों को भगवान की वेदी के समीप विराजमान करके उनकी पूजा-अर्चना की गई। क्योंकि आज ही के दिन जैन शास्त्र लिखकर उनकी पूजा की गई थी, उससे पहले जैन ज्ञान मौखिक रूप में आचार्य परंपरा से चल रहा था।






