अतिक्रमण समस्या है या लोगों का अधिकार
लक्ष्मणगढ़ (अलवर ) कमलेश जैन
अतिक्रमण एक मुद्दा नहीं सच्चाई है। और अब समस्या भी बन गया है।अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई यूं ही नहीं होती है। प्रशासन द्वारा बार-बार आगाह किया जाता है। सरकार जनता की हर संभव मदद करने को तैयार रहती है वो उसे घर से बेघर क्यों करेगी? हमें स्वयं भी तो विचार करना चाहिए क्या सारी गलती प्रशासन की ही है?
अतिक्रमण से सब दुःखी हैं पर कौन इसकी मार झेल रहा है शासन या जनता
जितना अधिक विकास हो रहा है। सड़कें चौड़ी हो रही हैं उतना ही लोग अतिक्रमण कर रास्तों को छोटा करते जा रहे हैं। कस्बे में सड़कों के किनारे नालो के ऊपर फुटपाथ इतने छोटे हो गए हैं कि पैदल चलना मुश्किल हो गया है। कस्बे में कहीं भी किसी भी जगह को देखें तो सबकी हालत खराब है। अतिक्रमण करके मार्गों को इतना संकीर्ण कर दिया है कि हर वक्त जाम की स्थिति बनी रहती है। कस्बे के मालाखेड़ा रोड भगत सिंह सर्किल से लेकर पुराने हॉस्पिटल पर हल्के चौपाइयां वाहन दिनभर खड़े रहने से बार-बार जाम की स्थिति बनी रहती है। लेकिन पुलिस प्रशासन एवं नगर पालिका प्रशासन की उदासीनता के चलते लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है । यहां एम्बुलेंस वाहन, रिक्शे, ठेली चलना भी मुश्किल है। पैदल को तो रास्ता ही नहीं मिल पाता है। इधर पुराने बस स्टैंड पर नालो के बाहर फुटपाथ पर भी बेचने का सामान लगा लेते हैं। कस्बे में जिस रास्ते निकलो उधर ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। रेहड़ी, पटरी वालों को तो किसी का भय ही नहीं है। सार्वजनिक स्थान तो जैसे इनकी संपत्ति है। लोग कहीं भी कुछ भी निर्माण कर लेते हैं चाहे दुकान हो या मकान इनके प्रति प्रशासन जब सजग होकर इनके घर, दुकान या ठेले हटवाने की मुहिम छेड़ता है तो ये आंदोलन पर उतर आते हैं। कष्ट देखने वालों को भी होता है। पर ये सबकी नाक में दम किए रहते हैं। सड़कों के दोनों ओर अपना अधिकार मानकर कब्जा किए रहते हैं। कभी-कभी तो अपनी दुकान के सामने किसी को खड़ा होने से भी रोक देते हैं। सूत्रों से जानकारी के अनुसार कस्बे में ऐसे भी दुकानदार मौजूद है जो अपनी दुकानों के सामने ठेली लगाने के पैसे वसूल कर रहे हैं। कोई मान्यता इनके पास नहीं होती।
कस्बे में आलम है की खाने का सामान बेचने वालों के चलते-फिरते वाहन सड़कों को स्थाई रूप से घेर लेते हैं। कई तरह की खूबसूरती व्यंजनों के स्वाद से ग्राहक आकर्षित होकर आते हैं और अपनी बाइक खड़ी कर सड़कें जाम कर देते हैं। बाजारों में दुकान तो आगे बढ़ाकर रखते ही हैं उतना ही सामान दुकानों के आगे भी लगा लेते हैं। एक तो जनसंख्या की अधिकता दूसरे हर जगह अतिक्रमण वास्तविक जीवन का आनंद खोता जा रहा है। प्रशासनिक बड़े- अधिकारी इन रास्तों से गुजरते हैं पर कोई कुछ कार्यवाही नहीं करता। जब कार्रवाई होती है। और प्रशासन हरकत में आता है तो कितने ही लोगों का सामान फेंक दिया जाता हैं ।या इन पर पुलिस कार्रवाई में लाठी बरसाई जाती है तब ये ही लोग दया के पात्र लगते हैं।
सरकारी, जमीन नजूल संपत्तियो खाई आदि पर जहां देखो वहां घर बना लिया दुकान निर्मित कर ली गई ये कितने वैध हैं कितने अवैध यह भी जांच का विषय प्रमुख है । कानून और कोर्ट के आदेश मानने को भी तैयार नहीं है यदि उनके घर तोड़ते हैं तो उनके साथ अन्याय होगा और यदि कोई कार्रवाई नहीं करते तो लोगों के हौसले बढ़ते जाते हैं।
आज पुराने बस स्टैंड स्थित जालूकी रोड कठूमर रोड खंडेलवाल धर्मशाला के सामने नगर पालिका प्रशासन के द्वारा ठेली एवं दुकानों के आगे लगाए हुए सामान को हटाया गया। एवं आगामी दिनों में सफेद पट्टी करने की बात कही गई।अस्थाईअतिक्रमण करने वालों का अतिक्रमण हटाया गया। प्रशासन की कार्रवाई पर लोग बौखलाए हुए हैं। बार-बार चेतावनी के बाद भी लोग नहीं मानते हैं।
कोर्ट कहां तक राहत दे? अतिक्रमण कहीं तो दरियादिली का नाम है, कहीं दर्द का आगाज कहीं रौबदार लोगों की आवाज है तो कहीं कमजोरों की चीख कहीं जबरदस्ती का अंदाज है तो कहीं बेबसी का आलम तो कहीं मजबूरी की कहानी हर तरह के अतिक्रमण से सब दुःखी हैं पर कौन इसकी मार झेल रहा है शासन या जनता?
शासन अपनी ही जमीनों के लिए राहत देता है और जनता उन पर काबिज हो करअपना हक समझकर हटाए जाने पर दुःखी होती है।
अतिक्रमण करने वालों की क्या सच्चाई है ये कार्रवाई उन अधिकारियों पर भी होनी चाहिए जिनकी मिली भगत से ये सब सरकारी जमीनों एवं नजूल संपत्तियों पर अतिक्रमण कर घर निवास एवं दूकान बना ली गई हैं। अतिक्रमणकारियों को राज्य सरकार के आदेशों की अवहेलना करते हुए पट्टे भी जारी कर दिए गए हैं ।
अतिक्रमण एक मुद्दा नहीं सच्चाई है और अब समस्या भी बन गया है। स्वयं भी तो विचार कीजिए क्या सारी गलती प्रशासन की ही है? अतिक्रमण समस्या है तो उसका उन्मूलन होना ही चाहिए साथ ही लोगो का मूल्यांकन हो जिसका जो अधिकार है उसे मिले अवैध कब्जा करने वालों को सबक मिले।