पंचमुखी हनुमान मंदिर बहरोड के महंत नित्यानंद जी महाराज स्वेच्छा से मंदिर सेवा कार्यभार से हुए मुक्त, हुआ भव्य आयोजन

श्री महंत नित्यानंद जी साक्षात धर्म की प्रतिमूर्ति है - डॉ0 प्रणव महाराज

Jan 5, 2021 - 16:40
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पंचमुखी हनुमान मंदिर बहरोड के महंत नित्यानंद जी महाराज स्वेच्छा से मंदिर सेवा कार्यभार से हुए मुक्त, हुआ भव्य आयोजन

बहरोड़ (अलवर,राजस्थान) महाराज श्री ने अपना सम्पूर्ण जीवन धर्म के लिए निस्वार्थ भाव से समर्पित किया । त्याग समर्पण प्रभु भक्ति और धर्म की साक्षात प्रति मूर्ति है  श्री महंत नित्यानंद जी महाराज , जो सेवा कार्य  इन्होंने अपने कार्यकाल में किये वह सब एक साधारण मानव के लिए संभव नही। ये उद्गार श्री पंचमुखी हनुमान मंदिर के श्री महंत पुज्य नित्यानंद जी महाराज के मन्दिर सेवाकार्य से विदाई समारोह के समय अनंत श्री विभूषित ज्योतिष एवं द्वारिका शारदापीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: स्वरुपानंद सरवस्ती जी महाराज के विशेष कृपा पात्र एवं  सनातन धर्म संसद से अलवर सांसद श्रधेय आचार्य डॉ0 प्रणव जी महाराज ने कहे।
गौरतलब है कि ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरुदेव श्री सागरानंद जी महाराज की विशेष अनुकम्पा से श्री पंचमुखी हनुमान जी मन्दिर के श्री महंत नित्यानंद भारद्वाज जी महाराज का सोमवार को कार्य भार से विदाई महोत्सव बड़े ही धूम धाम से मनाया गया। महाराज श्री ने स्वेइच्छा से मन्दिर सेवा का कार्य भार सेवा समिति को आशीर्वाद स्वरुप प्रदान किया। 
महंत रामानंद जी महाराज ने बताया कि पूज्य श्री कई दशकों से मन्दिर व्यवस्था व सेवा सम्भाल रहे थे जिनको स्वयं सद्गुरुदेव सागरानंद जी ने ये कार्य भार सौपा था। महाराज श्री के कार्यकाल में मन्दिर ने काफी उन्नती की है। आज राठ क्षेत्र में इस मंदिर को सिद्ध पीठ के रूप से जाना जाता है ये नित्यानंद जी महाराज की सेवा निष्ठा और तपश्चर्या का ही परिणाम है। ईसके लिए सम्पूर्ण भक्त समाज व मन्दिर सेवा समिति ऋणी रहेगी। 
ज्ञातव्य है कि श्री नित्यानंद जी महाराज एक सिद्ध चमत्कारी सद्गृहस्थ सन्त है जिनको सागरानंद जी व  साक्षात श्री पंचमुखी हनुमान जी व बाबा श्याम की समपूर्ण कृपा प्राप्त है। अपनी साधना सिद्धि और प्रभुकृपा से जनकल्याण सदैव ततपर रहते है इसलिए विदाई के इस समय भगत मंडल अपने आप को रोक नही पाए भावुक हो गए। भगतो ने कहा आप अभी हम सभी को अपनी सेवा से वंचिन्त न करें । तब महाराज ने कहा की
ये संसार नदी नाव संजोग के जैसे है धैर्य धारण कीजिये।और हम आप सभी के मध्य अपने निवास स्थान रहेंगे। जहा से सत्संग का लाभ आप सभी को मिलता रहेगा। 
 कर्म की गति न्यारी है जो जैसा करता है फल उसी अनुसार मिलता है। अतः सदैव अच्छे कर्म करो कभी किसी की आत्मा मत दुखाना सदैव जन कल्याण की भावना से कार्य करते रहना।  आप सभी सदैव धर्म के पथ पर अग्रसर रहे हमारा आशीर्वाद ओर मार्गदर्शन सदैव आप सभी के साथ है। जब जब प्रभु प्रेरणा होगी पर श्री हनुमान जी महाराज के दर्शन को आते रहेंगे ।
इस अवशर पर भंडारे का आयोजन किया गया और भव्य रथ यात्रा निकाली गई मार्ग में तमाम सामाजिक संस्थाओं ने माल्यार्पण कर स्वागतं किया इस समय  ब्रह्मलीन सद्गुरु सागरानंद जी महाराज काँकर छाजा आश्रम से श्री मंहत रामानंद जी महाराज , आचार्य डॉ0 प्रणव जी महाराज , पंडित रामचन्द्र जी , भवानी शंकर , सोमदत्त जी , भीम भारद्वाज तथा सेवा समिति अध्य्क्ष विनय यादव , शिवकुमार शर्मा , डीसी यादव , सीताराम , जतिन , अरुण शर्मा उर्फ लाला,  दयानंद, रामजस , धर्म चंद योगी मुन्नाराम ,रामचन्द्र यादव,  विक्की सलारिया , महेश योगी , डॉ शिवराम शर्मा एवं ग्रामवासी काँकर छाजा सहित बहरोड़ क्षेत्र के तमाम लोग मौजूद रहे। ।

 

श्री पंचमुखी हनुमानजी मन्दिर -

श्री पंचमुखी हनुमान जी महाराज का मंदिर न्ये बस स्टैंड बहरोड़ में अवस्थित है। इस मंदिर संस्थापक परम तपस्वी साक्षात सिद्ध मूर्ति अनंत श्री सदगुरू देव श्री सागरानंद जी महाराज मानव कल्याण योगाश्रम ( ग्राम काँकर छाजा ) ने सन 1990 में की थी। सागरानंद जी  ने नित्यानंद जी की प्रभु भक्ति समर्पण सेवा ज्ञान आदि को देखते हुए श्री हनुमान जी की आज्ञा से  पंचमुखी हनुमान मंदिर का सर्वस्व कार्य भार और अधिकार इन्हें सोपा था । नित्यानंद जी ने गुरु आज्ञा को शिरोधार्य किया और अपनी तपस्या प्रभु सेवा से श्री पंचमुखी हनुमान जी मन्दिर को एक सिद्ध पीठ के रूप में जाग्रत किया। जिसके फल स्वरूप हनुमान जी महाराज जी ने विशेष कृपा ओर अपने सुक्ष्म स्वरूप के दर्शन प्रदान किये। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी महाराज जी कृपा से नित्यानंद जी को वाक सिद्धि भी प्राप्त है जो उनके मुख से निकल जाता है वह अवश्य की होता है। इसी लिए आशीर्वाद लेने और हनुमंत कृपा प्राप्त करने के लिए देश के विभिन्न क्षेत्रों के श्रद्धालु आते रहते है। 

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महाराज की प्रेरणा से मन्दिर में हर मंगलवार को भजन संध्या तथा शनिवार को सुंदरकाण्ड के पाठ का आयोजन एवं अन्न कूट , श्री राम नवमी , श्री कृष्णजन्माष्टमी श्री हनुमान जयंती आदि पर्वो को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। हनुमान जयंती पर विशाल भण्डारे का योजन किया जाता है जो भी दान दक्षिणा पुज्य श्री को भगतो द्वारा मिलती थी वह उसे भी मन्दिर व भंडारे में समर्पित कर देते थे। इसलिये लिये लोग निर्मोही भी कहते है। मन्दिर की तरफ से नित्य गो सेवा औऱ असहाय गरीबो के लिए निःशुल्क भोजन की व्यवस्था होती है। आज क्षेत्र के बड़े स्थानों में इस सिद्ध पीठ को गीना जाता है।

नित्यानंद जी महाराज इंद्रजीत ही नही निन्द्रजीत भी है- 

महाराज श्री नियम रहा है कि चाहे जो परिस्थियां जीवन मे आये जैसा भी समय आये प्रभु सेवा नित्य नियम से होनी चाहिए। जैसा वह कहते है वैसा करते भी है। नियम रहा नित्य ब्रह्ममहूर्त से पूर्व ही 3 बजे जग जाना फिर मन्दिर और सेवा में लग जाते दिन भर श्रद्धालुओं को आशीर्वचन भी देते रहते यही क्रम दिन भर रहता और रात्रि 11 बजे विश्राम को जाते फिर सुबह 3 बजे उठ जाना यही क्रम सम्पूर्ण सेवा काल मे बनाये रखा और अब आगे सेवा भार संभाले वाले को भी  यही परम्परा आगे भी बनाये रखनी चाहिए । कुछ असुरों ने सुविधाओ को खत्म करने तथा धर्म कार्य मे बाधा उत्तपन्न करने का कुप्रयास भी किया । फिर भी परवाह किये बिना धर्म के पथ पर डटे रहे और धर्म ध्वज लहराते रहे। उम्र के इस पड़ाव में आने के बाद भी कभी सोते नही देखे कभी थके नही देखे सदैव ऊर्जावान प्रभुसेवा में ततपर रहे, इसीलिए इन्हें इंद्रजीत के साथ साथ निद्रजीत भी कहाजाता है।

ब्रह्मऋषी श्री नित्यानंद भारद्वाज जी का संक्षिप्त परिचय -  

नित्यानंद जी का जन्म कुलीन ब्राह्मण परिवार भारद्वाज गोत्रीय श्रोतीय ब्रह्मनिष्ठ श्री सागरमल जी शर्मा व माता मोहरादेवी के यहां अश्विन शुक्ला तृतीया विक्रमी संवत 2004 तदनुसार इशवी  सन 1948 को हुआ । बचपन से इनका मन सन्त सेवा व आत्म चिंतन में लगता था। जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते है उस उम्र में ये शिवमन्दिर में शिव परिवार से खेलते थे उनन्हे ही मित्र मानते जो खाना पीना होता पहले भगवान शिव को चढ़ाते फिर खाते। इसके प्रश्नों का जबाब देने में बड़े बड़े विद्वान बगले झांकने लगते थे। बचपन से ही अद्भुत प्रतिभा के धनी रहे है। आज की भौतिक शिक्षा के साथ साथ आध्यात्मिक ज्ञान के धनी नित्यानंद जी के सामने कई बार अवशर आये सरकारी नोकरी के लिए परंतु जिसे प्रभु भक्ति का रंग लगा हो उसे इन सबसे क्या मतलव ? इनका लक्ष्य था कि हमें अपने धर्म राष्ट्र के लिए कुछ करना है और इसी चाह ओर निष्ठा ने बालक नित्यानंद को श्री महंत नित्यानंद जी महाराज बना दिया।  अल्प अवस्था मे ही पिता श्री का देवलोक गमन हो गया तो पूरे परिवार भार इनके सर पर आ गया।  चुकी पाँचो भाइयो में से सबसे बड़े थे। भौतिक और आध्यात्मिक शिक्षा के साथ साथ मेहनत करके परिवार का पालन करते रहे। अंततोगत्वा धर्म को ही कर्म बना लिए औऱ गीता भवन में अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा से लोगो को धन्य करने लगे। 
श्री श्याम मन्दिर में कई वर्षों सेवा किये और मन्दिर को अपनी भक्ति से चमकाये लोग वही पर अब ध्वज यात्रा लेकर आने लगे। फिर बाबा श्याम की प्रेरणा हुई कि अब आपको भगवान श्री राम और हनुमान जी की सेवा करनी होगी। उसके बाद ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु सागरानंद जी महाराज श्री की कृपा मिली और श्री पंचमुखी हनुमान जी की सेवा का सौभाग्य प्राप्त किया  कई दशक सेवा किये। इनके जीवन का 80% जीवनकाल मन्दिर व धर्म की सेवा में ही व्यतीत हुआ।  इनके साथ जुड़ने वाले लोगो को अनेकों अलौकिक चमत्कार हुए। सद्गृहस्थ सन्त श्री नित्यानंद जी भारद्वाज के 2 पुत्र व 2 पुत्रियां है। बड़ा पुत्र रामचंद्र भारद्वाज के नाम से ज्योतिषचार्य के नाम से प्रसिद्ध है ही वही छोटा पुत्र भीम भारद्वाज सांवरा साउंड & म्यूजिकल ग्रुप तथा खरा केयर इंडस्ट्रीज चलाते। इनके बड़े दोहते आचार्य डॉ0 प्रणव जी को जगतगुरु शंकराचार्य जी द्वारा धर्म संसद में अलवर सांसद नियुक्त किया गया है जो कि धर्म सेवा के साथ वैदिक ज्ञान के प्रचार प्रसार हेतु आदि गुरु फाउंडेशन तथा आदिगुरु आयुर्वेद फार्मेसी चला रहै है।

श्री खाटू श्याम जी पद यात्रा सुरु करने वाले बहरोड़ क्षेत्र के पहले व्यक्ति -

आज प्रत्येक व्यक्ति बाबा खाटू श्याम की कृपा चाहता है और लाखों की संख्या में ध्वज लेकर प्रभु भक्त ध्वज लेकर पदयात्री जाते है।  लेकिन बहरोड़ क्षेत्र के प्रथम व्यक्ति है श्री नित्यानंद जी महाराज जिन्होंने  बहरोड़ से खाटू श्याम जी पद यात्रा सम्पूर्ण की थी। एक समय स्वयं बाबा श्याम का स्वप्न में माध्यम से दर्शन आज्ञा हुई तब पैदल यात्रा के लिए कुछ साथियों के साथ निकले और बहरोड़ क्षेत्र के प्रथम श्री खाटूश्याम जी पदयात्रा का सौभाग्य इनके मंडल को प्राप्त हुआ। उसके बाद तो मानो बाबा श्याम की फुल कृपा बरसी ।

जिसके फल स्वरूप बाबा श्याम की दिव्य ज्योति स्वरूप बहरोड़ में स्थापित हुए और आज भी बाबा भगतो का कल्याण कर रहे है। इनकी अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर साक्षात बाबा श्याम के दिव्य दर्शन और सम्पूर्ण कृपा तथा श्री श्याम सेवा  नित्यानंद जी महाराज को प्राप्त हुई थी। 

महाराज श्री का जीवन चरित्र आकाश में दैदीप्यमान सूर्य के जैसे है - आचार्य डॉ प्रणव महाराज

धर्म संसद की तरफ से सम्बोधित करते हुऐ धर्म सासंद आचार्य डॉ प्रणव महाराज जी ने कहा कि ,महाराज  श्री का जीवन चरित्र आकाश में दैदीप्यमान सूर्य के जैसे है जो नित्य सभी क्षेत्र वासियों को ज्ञान भक्ति की रोशनी प्रदान करता रहेगा।  मन्दिर समिति और सभी भक्त परिवार को महाराज के पावन चरित्र से शिक्षा लेनी चाहिए कि किस प्रकार स्वयं को भक्ति में समर्पित किया जाता है। भक्ति को जीवन में उतारना होता है ये आडंबर का नही आत्म चिंतन का विषय है। जहाँ पर ऐसे तपस्वी सन्त विराजते है वह सामान्य स्थान नही साक्षात तीर्थ बन जाता है जो युगों युगों तक उनकी तपश्चर्या का यशगान करता रहता है।  जिस प्रकार मन्दिर तीर्थ में की गयी सेवा पूजा जप तप दान का करोड़ो गुणा फल मिलता है उसी प्रकार देव स्थानों पर किये गए अपराध भी वज्र लेख बन जाते है जिसका कर्मफल सम्पूर्ण परिवार को भुगतना होता है। इसलिए इंसान को अपने कर्मो में प्रति अत्यंत ही सजग रहना चाहिए। 
 मन्दिर समिति सहित सभी भगतो को  आशीर्वचन कहते हुए बोले हमें आशा है कि आप सभी मन्दिर मर्यदा प्रभु सेवा का ख्याल रखेगे। रखना ही होगा चुकी यह जाग्रत स्थान है फ़ल तुरन्त मिलता है । भगत को वरदान ओर दुष्ट को दंड हनुमान जी महाराज तत्काल देते है। इसके तमाम उदारहण आप सभी के प्रत्यक्ष है। प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नही।  इनकी भक्ति का यह प्रताप रहा जो संकल्प मन मे कर लेते थे वही हो जाता था । ईनकी इच्छा थी कि गो माता और गरीब बंधूओ की सेवा सहायतार्थ  कुछ होना चाहिए। ओर ऐसा संयोग बना की प्रभु कृपा से श्री कृष्ण गो सेवा समिति का बनाई और गो सेवा का कार्य सुरु हुआ। दूसरा संकल्प था गरीब असहाय की सेवा का वह भी प्रभु कृपा से साकार हुआ आज श्री पंचमुखी हनुमान मन्दिर पर नित्य गरोबो के लिए भंडारे का आयोजन किया जाता है।  एक प्रमुख विशेषता यह भी रही की कभी किसी भी कार्य का श्रेय स्वयं नही लिए न पद लिए। सदैव दूसरों को आगे बढ़ाया।  ऐसे कई बार अवशर आये है जब दुष्टो कोे क्षमा करने हेतु श्री हनुमान जी महाराज से प्राथना करि और अपनी तपस्या के बल से बचाया है। इसी भाव के साथ कि आज नही तो कल सुधर जायेगे ये होता सन्तो का दर्शन । ऐसे ही भाव आप सभी को रखने चाहिए सभी के कल्याण हेतू सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना से प्राथना करनी चाहिए।

 

मयंक जोशी की रिपोर्ट 

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