पीपल पूर्णिमा आज पीपल वृक्ष सिंचन व पूजन का दौर रहा परवान पर
लक्ष्मणगढ़ (अलवर ) लक्ष्मी स्वरूपा, अधिकाधिक प्राण वायु ऑक्सीजन देने वाले पीपल वृक्ष का वैशाख में भक्ति गीतों के साथ पूजन, सिंचन व ऊं नमो भगवते वासुदेवा’ के मंत्र के जाप के साथ परिक्रमा देने का सिलसिला कस्बे व ग्रामीण क्षेत्रों में परवान पर रहा। आज पीपल पूर्णिमा पर चलने वाले अनुष्ठान में महिलाओं नेअधिकाधिक संख्या में धार्मिक भावना के साथ भागीदारी निभाई।
नव विकसित कॉलोनियों, गांव व कस्बों में पीपल के वृक्ष का पूजन, सिंचिन सुबह सूर्योदय से करीब नौ दस बजे तक धर्मावलम्बीयों के द्वारा किया गया ।वहीं शाम को भी शनि की पीड़ा को दूर करने, शनि की कृपा प्राप्त करने के लिए दीप प्रज्जवलित लोगों द्वारा किया गया।
श्रद्धालुओं ने पीपल के वृक्ष को दूध, पानी काले तिल डाल कर सिंचन किया। रोली-मोळी चढ़ाकर, परिक्रमा की तहसील गेट के अंदर खंडेलवाल धर्मशाला मालाखेड़ा रोड स्थित बावड़ी पर भी महिलाओं का समूह नियमित पीपल पूजन के दौरान भजन ’’सारी में सृष्टि मेंं पीपल देवरा रामजी, राखो म्हारे कुळ री लाज पीपल देवरा रामजी’’ आदि भजन गा रही थी।
पद्म पुराण के अनुसार, पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु स्वरूप है। इसको धार्मिक क्षेत्र में श्रेष्ठदेव वृक्ष का सम्मान मिला है। शास्त्रों में बताया गया है कि पीपल के वृक्ष का विधिवत पूजन, नमन, व परिक्रमा करने से आयु की वृद्धि होती है तथा पापों का नाश होता है।
पंडित लोकेश कुमार के अनुसार, पीपल में त्रिदेव का वास होता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते है ’’अश्वत्थः सर्ववृक्षाणम’’ यानि सब वृक्षों में पीपल वृक्ष हूं। इसके जड़ में श्री विष्णु, तने में भगवान शंकर तथा अग्रभाग में ब्रह्माजी का वास रहता है। अश्वत्थ वृ़क्ष के भूतल में साक्षात हरी का वास रहता है। पीपल के वृक्ष को लगाने, रक्षा करने, छूने तथा पूजने से धन, संतान, स्वर्ग व मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसमें पितरों का वास, सभी तीर्थों का निवास होता है।