जंगल में झाड़ियों का बड़ा महत्व: जल जंगल जमीन सभी में घुल चुका ज़हर

Dec 30, 2022 - 14:08
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जंगल में झाड़ियों का बड़ा महत्व: जल जंगल जमीन सभी में घुल चुका ज़हर

वन वनस्पतियों के विकास के लिए सामाजिक व्यवस्थाओं, मान्यताओं को पुनः स्थापित किया जाए जिससे आम व्यक्ति में जागरूकता के साथ वनों के प्रति समर्पण का भाव पैदा हो। भौतिकवादी विचारधाराओं, औधोगीकरण, शहरीकरण, बाजारीकरण, की नितियों में परिवर्तन किया जाए जिससे प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षण प्राप्त हों सके तथा आगामी पर्यावरणीय संकटों से निपटा जा सके।
समाज में बुजुर्ग, नदी में नाले का जीतना बड़ा महत्व होता वे से ही  जंगल में झाड़ियों का बड़ा महत्व रहा। नदी के विस्तार के लिए एक छोटा नाला महत्वपूर्ण स्थान रखता, सैकड़ों नालों के एक साथ जुड़ने से नदी अपना स्वरूप बना पातीं वैसे ही जंगल में सभी प्रकार की वनस्पतियां होने पर जंगल बनता उसी से उसकी उपयोगिता, महत्वकांक्षा बनतीं, सैकड़ों प्रजातियों की छोटी बड़ी झाड़ियों, बेलों, पेड़ पौधों से मिलकर बड़े वन क्षेत्र का विस्तार होने पर उसे एक रिजर्व क्षेत्र  बना दिया जाता जो अपनी एक अलग पहचान बना लेता और उसकी उपयोगिता को हर व्यक्ति समझने का प्रयास करने लगता है जो जरूरी भी है। समाज में बुजुर्ग महिला पुरुष सभी सामाजिक व्यवस्थाओं, रिती रिवाज, परमपराएं, मान्यताओं को बनाएं रखने के साथ युवा पीढ़ी में संस्कारों का समावेश करते हैं जिससे समाज की मान मर्यादा बनी रहती और इसमें 80 प्रतिशत वृद्धजनों का योगदान होता है।  वन क्षेत्रों में 75 प्रतिशत भूमि पर झाड़ियों तथा 25 प्रतिशत क्षेत्र पेड़ पौधों का होता है। छोटी छोटी वनस्पतियां जो विभिन्न प्रजातियों की पाई जाती व्यक्ति  वन्य जीवों के लिए बहुउपयोगी होने के साथ 80 से 90 प्रतिशत औषधीयो की आवश्यकता की पूर्ती करने, पारिस्थितिकी अनुकूलता को अधिक बनाए रखने में मददगार साबित होती रही, इनसे बेस कीमती जड़ी बूटियां, कंद, फल- फूल, छाल, पत्ते, लकड़ियां मानव प्राप्त करता, पशु - पक्षियों, वन्य जीवों के साथ साथ छोटे बड़े जीव जो वनस्पतियों पर निर्भर रहते आये उन्हें जीवन जीने का अवसर प्राप्त हुआ। वृद्ध जन को सामाजिक व्यवस्थाओं, नदी को नालों व जंगल को झाड़ियों से दुर करना बड़ी गलत सोच रहीं। झाड़ियों को केवल झाड़ियां समझना बड़ी भुल रहीं, जिसका परिणाम वन क्षेत्र का 15 प्रतिशत से घट कर इस समय 07 प्रतिशत से कम होना एक चिंता जनक है। विश्व में वनस्पति के विकास के बाद वनों का विकास हुआं, इसके बाद वन्य जीव, मानव, पशु पक्षी इन्हें अपने आवास, भोजन भौतिकवादी सुख सुविधा प्राप्त करते हुए आगे बड़ा जो कटु सत्य है।  
पर्यावरण द्रष्टि से वनस्पतियों का जीतना बड़ा महत्व बनता उतना ही भूगर्भीय जल स्तर को बनाए रखने जन्तुओ के सुरक्षित आवास में इनका सहयोग रहा, पारिस्थितिकी तंत्र अनुकूल रहता,  जैव विविधता को बनाएं रखते,  स्वच्छता बनी रहती, इन को   सैकड़ों हजारों वर्षों पुर्व मानव संजोकर रखने लगा, सामाजिक व्यवस्थाओं से जोड़ा, मानव धर्म में वृक्ष को श्रेष्ठ स्थान दिया।  कुटुम्ब, परिवार, गांव,शहर में वनों के लिए एक सुरक्षित क्षेत्र रखा, प्रत्येक व्यक्ति समाज वर्ग को पेड़ों से जोड़, बनीं अरण्य, देव बनीं का निर्माण किया, नदियों नालों को संरक्षण दिया, यहीं नहीं जहां वन्य जीव विचरण करते उन स्थानों से लकड़ी लेने तथा पेड़ काटने पर प्रतिबंध लगाया। परिणाम स्वरूप सामाजिक व्यवस्थाओं के चलते धरातल पर 27 प्रतिशत तक वन विकसित हुएं जो पिछले पांच- छः  दशकों तक दिखाई देते रहे। वनस्पतियों के बहुतायत में होने से जल स्रोतों में हमेशा पानी बना रहता, नदी या बारह महीने  बहती, झरनें हर मौसम में कल कल करतें, जल थल नभ में विचरण करने वाले जीव एक साथ अपने कुटुम्ब में सैकड़ों की संख्या में उड़ते तैरते दौड़ते दिखाई देते जो वनस्पतियों की देन रहीं।
मानवीय विकास के नाम पर 1850 से 1900 के मध्य वनों का विनाश प्रारंभ हुआ जो 1930 तक आते आते भौतिकवादी विचारधारा, औधोगीकरण, शहरीकरण, बाजारीकरण के पनपते हुएं 1970 तक वनों को समेटे कर 15 प्रतिशत से नीचे पहुंचा दिया जिससे पर्यावरण प्रदुषण के संकेत दिखाई देने लगे,  जल स्तर पाताल लोक पहुंचने लगा, विभिन्न वनस्पतियों की प्रजातियों , वन्य जीवों की प्रजातियां लुप्त होती दिखाई देने लगी जो आज साफ़ देखने को मिल रहा है। वर्ष 2010 के बाद पर्यावरण, वनस्पतियों, भू - गर्भिक  जल को ग्रहण लग गया, परिणामस्वरूप वनों से 60 प्रतिशत वनस्पतियां नष्ट हो गई, वन्य जीवों के सुरक्षित आवास नष्ट हो गये, स्वच्छता सुंदरता खत्म हो गई यही नहीं आज प्राण वायु की गुणवत्ता नष्ट हो चुकीं जो हम सब देख रहें हैं, पत्र पत्रिकाओं में पढ़ रहे हैं, सरकारों व सामाजिक संगठनों से सुनते जा रहें हैं वह कटुसत्य है।  वनस्पतियों का शोषण हमें विनाश की और लेकर जा रहा है, जल जंगल जमीन आकाश समुन्दर सभी में ज़हर घुल चुका है सभी जगह पर्यावरणीय स्वच्छता की आवश्यकता है। आज आवश्यकता है की हम पुनः वन क्षेत्रों में वनस्पतियों के विकास के लिए काम करें, शहरों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे छोटे वन क्षेत्र विकसित करें, सामाजिक व्यवस्थाओं, कानुनों को पुनः स्थापित करें, जिससे आम जन में जागरूकता के साथ वन वनस्पति वन्य जीवों के प्रति समझ बनें और पर्यावरणीय विकास तथा संरक्षण को लेकर नया इतिहास रचा जा सके। लेखक के अपने निजी विचारों है।

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