उपखंड वैर के गांव धरसौनी का आई पंथ नाका आस्था का केन्द्र एवं सन्तों की तपोस्थली

 नेपाल राजपरिवार सदस्य सत्यले बाबा ने ली थी जिन्दा समाधी

Feb 18, 2024 - 07:33
Feb 18, 2024 - 11:31
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उपखंड वैर के गांव धरसौनी का आई पंथ नाका आस्था का केन्द्र एवं सन्तों की तपोस्थली

वैर- भरतपुर ...

उपखंड वैर के गांव धरसौनी एवं बाणगंगा नदी किनारे स्थिम आई पंथ नाका आश्रम सन्तों की तपोस्थली है और सन्त व ग्रामीणों का ये आश्रम आस्था का केन्द्र है। यहां करीब 300 साल पहले नेपाल राज परिवार के सदस्य रतन सिंह उर्फ सत्यले बाबा ने तपस्या कर जिन्दा समाधी ली,इनके आला एक दर्जन से अधिक नागा सम्प्रदा के सन्तों की भी समाधी है और आज भी सन्त तपस्या करते है। सत्यले बाबा व अन्य सन्तों के बताए मार्ग पर क्षेत्र के सन्त व लोग कायम है। सन्तों के चमात्कारों की चर्चा एवं उनकी तपस्या पर लोग विश्वास बनाए हुए है। सत्यले बाबा एवं अन्य सन्तो के भरतपुर, वैर, धौलपुर व करौली राजघराना के कई सदस्य इनके दर्शन कर शिष्य बन गए। आज भी साल में दो बार विशाल भण्डारा व एक बार भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। सन्त भैरोनाथ,लालनाथ,रामधननाथ आदि सन्तों की समाधी है,इनके अलावा अन्य सन्तो की समाधी है,जिनके नाम लोग नही जानते।  

- राजपाठ छोड बने सन्त

गांव के लोग बताते है कि सन्त सत्यले बाबा उर्फ रतन नेपाल राजपरिवार के सदस्य थे,जो भारत भ्रमण पर आए,नागा सम्प्रदा के सन्तों के सम्पर्क में आने पर शाही जीवन त्याग कर साधु बन गए और गुरू गोरखनाथ बाबा के जीवन से प्रभावित होकर नागा सम्प्रदा में प्रवेश कर गांव धरसौनी के निकट बाणगंगा नदी किनारे घने जंगल में तप करने लगे,नेपाल से कई बार राजपरिवार के सदस्य एवं अन्य लोग मिलने आए,लेकिन उन्होने साथ में जाने से स्पष्ट इंकार कर दिया। ये जंगल हिंसक जानवरों का बसेरा था। इन्हे गौवंश ,वन जीव-जन्तु,वन सम्प्रदा आदि से बेहद लगाव था। इनकी आज पांचवी पीढी के शिष्य के बाद अब चरणनाथ बाबा आश्रम की व्यवस्थाए संभाल रहे है।  

- नही आऐंगे ये कष्ट

सन्त चरणनाथ बाबा एवं भगत रनधीर सिंह ने बताया कि आश्रम पर सत्यले बाबा के बाद एक दर्जन से अधिक सन्तों ने तप किया,सभी सन्तों के चमत्कार आज भी कायम है। सत्यले बाबा ने क्षेत्र के लोगों को बताया कि आश्रम से जुडे किसी भी गावं में ओलावृष्टि,महामारी व टिड्डी का असर नही होगा,जो आज सत्य सावित हो रहा है। साल 2022 में रात्रि के समय टिड्डी दल ने ढेरा डाल दिया,लोग भयभीत होकर सत्यले बाबा को याद करने लगे,सुबह सवा पाचं बजे आरती का शंख बजा,जो टिड्डी दल क्षेत्र में बिना नुकसान किए आश्रम के चारों ओर चक्कर लगा कर उड गया। साथ ही कोरोना महामारी काल में भी कोई भी व्यक्ति प्रभावित नही हुआ। 

- वैर राजा प्रताप सिंह हुए नतमस्तक

आई पंथ नाका के जंगल में सत्यले बाबा की गौवंश चरता था,कोई भी हिंसक जानवर बाबा के गौवंश को नुकसान नही पहुंचाता,जब वैर के राजा प्रताप सिंह की गाय इधर आती,जो हिसंक जानवर उन्हे शिकार कर खा जाते। जिसका राजा प्रताप सिंह को बुरा लगा,एक दिन राजा ने बाबा के सभी गौवंश को घेर कर वैर गौशाला में लाने का हुक्म दिया,राजा के सेवकों ने गौवंश को घेर लिया,तभी एक हिसक जानवर ने राजा के सेवको पर हमला बोल दिया। सेवक डर कर भाग निकले। राजा प्रताप सिंह को क्रोध आया और सेना लेकर बाबा की ओर चल दिया,रास्ता में बाबा ने उन्हे क्रोध का कारण पूछा,तो राजा ने बोल दिया कि आज जंगल में तप कर रहे साधु को सबक सिखाना है,बाबा हंस गए। आश्रम पर पहुंचे ही राजा को हिसंक जानवरो ने घेर लिया,अन्त में बाबा ने उन्हे बचाया। राजा को शर्म आई और सिर झुका कर स्वयं के कार्य की क्षमा मांगीे और बाबा का शिष्य बन गया। 

- महिलाओं का प्रवेश वर्जित

सत्यले बाबा एवं अन्य सन्तों के द्वारा चेताया धुना वाले स्थान पर आज भी प्रवेश वर्जित है। धुना स्थल को एक बडे हॉल का रूप दे दिया गया है,जहां दरवाजा पर स्वष्ट लिखा है कि महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। गांव एवं अन्य स्थान से दर्शन करने आने वाली महिलाएं दूर से ही धुना के दर्शन कर आश्रम की परिक्रमा लगाती है और हनुमान,शिवालय व सन्तों की समाधी आदि के दर्शन कर पूजा-अर्चना करती है।

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