स्वस्ति धाम पर मनाया गया श्रुत पंचमी महापर्व
जहाजपुर (आज़ाद नेब) स्वस्ति धाम में आज बड़ी धूमधाम व भक्ति भाव से श्रुत पंचमी महा पर्व क्षुल्लिका अर्हतमति माताजी क्षुल्लक परिणाम सागर जी महाराज एवं ब्रह्मचारिणी स्वाति दीदी के सानिध्य में मनाया गया।
इस युग के धर्म प्रवर्तक भगवान 1008 महावीर स्वामी की दिव्य देशना गणधर देवो ने ग्रहण की उस ज्ञान को अपने शिष्यों को बताया, और इसी गुरु शिष्य प्रणाली से ज्ञान आगे बढ़ता रहा। आचार्य प्रवर 108 श्री धरसेनाचार्य के अनुभव में आया की अब शिष्यों में विस्मृत के कारण ज्ञान ग्रहण में कमी आनी शुरू हो गई है तब उन्होंने महावीर देशना को लिपिबद्ध कराने का निर्णय लिया। और अपने समान सक्षम आचार्य से दो कुशल शिष्यों को इस कार्य हेतु बुलवाया। उन दोनो के ज्ञान तथा धैर्य के परीक्षण के बाद उन्ही दोनो से वीर वाणी को अक्षुण्य बनाने हेतु लिपिबद्ध कराना शुरू किया।
दोनो शिष्य 108 श्री पुष्पदंत महाराज एवम 108 श्री भूतबली महाराज ने जैन धर्म के पहले ग्रंथ श्री शतखंडागम, जिसमे पंच नमोकार महामंत्र को मंगलाचरण के रूप में प्रयोग किया है। ऐसा प्रथम लिपिबद्ध ग्रंथ आज के दिन यानी पंचमी तिथि को पूर्ण हुआ था। इसी लिए इस पर्व दिवस को श्रुत पंचमी, ज्ञान पंचमी आदि नामो से पुकारा गया है। इस ग्रंथ को छः अध्याय में संपादित किए जाने से शटखंडागम नाम दिया गया है। तत्पश्चात अनुवर्ती आचार्यों द्वारा इस ग्रंथ पर टीकाये, सरल प्रचलित भाषाओं आदि में लिख कर आम जन को स्व पर कल्याण हेतु प्रसारित किया है। इन परम उपकारी आचार्यों को हमारा शत शत वंदन। मोक्ष मार्ग प्रकासनी जिनवाणी माता की जय, श्रुत पंचमी की जय।
मीडिया प्रभारी नेमीचंद जैन ने बताया कि आज पर्व के दौरान प्रातः कालीन बेला में सामूहिक रूप से पंडित जय कुमार शास्त्री के निर्देशन में प्रतिदिन की भांति भगवान का 1008 कलशो से भगवान की अभिषेक शांति धारा की गई उसके पश्चात सभी धर्म प्रेमी बंधुओ के सानिध्य में जहाज मंदिर की परिक्रमा करता हुआ एक भव्य जुलुस निकाला जिसमें ताड़पत्रों पर हस्तलिखित शास्त्र, समयसार, पाहुड ग्रंथ को मस्तक पर धारण कर जिनवाणी माता का जयकार लगाते हुए पुनः मंदिर मे प्रवेश किया।