पटाखे जलाने पर लगी रोक, निकलने वाली गैसे मानव स्वास्थ्य के लिए घातक
लक्ष्मणगढ़ (अलवर ) कमलेश जैन
दीपों व खुशियों का त्योहार पर पटाखे नहीं चलाना ही स्वास्थ्य और वातावरण के लिए हितकर रहेगा। खंड मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर रूपेंद्र शर्मा ने बताया कि जिला प्रशासन ने पटाखे चलाने पर रोक लगा दी है । आम नागरिकों को इसकी पालन करना आवश्यक है।
प्रशासन ने दीपावली पर पटाखे फोड़ने (ग्रीन पटाखे छोड़कर) पर प्रतिबंध लगा दिया है।पटाखे-बम से निकलने वाली सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड गैस व हेवी मेटल्स सल्फर, शीशा, क्रोमियम, कोबाल्ट, मरकरी मैग्निशियम मानव सेहत के लिए बहुत घातक हैं।
धूंए से मरीजों को नुकसान पहुंचता है- दीपों व खुशियों का त्योहार पर पटाखे न चलाना ही स्वास्थ्य और वातावरण के लिए हितकर रहेगा। उन्होंने कहा कि पटाखों का धुआं सबसे अधिक अस्थमा, टीबी के रोगियों को नुकसान पहुंचाता है। इनके अलावा हार्ट के रोगियों और गर्भवती को भी धुआं से नुकसान बहुत पहुंचता है। डा. रूपेंद्र ने कहा कि पटाखों से उन्हें फोड़ने वाले की सेहत को ही नुकसान नहीं पहुंचता, पास के घरों में धुआं पहुंचने से मरीजों व सामान्य लोगों को नुकसान पहुंचता है।
गर्भस्थ शिशु को नुकसान- गर्भवती महिलाओं के लिए पटाखों की आवाज, निकलने वाला धुआं और रासायनिक पदार्थ अत्यंत हानिकारक है। पटाखों की आवाज से मां की धड़कन बढ़ेगी, इसका प्रतिकूल असर बच्चे पर पड़ता है। हानिकारक गैस से शरीर में आक्सीजन की कमी हो जाती है, गर्भवती की सांस फूलेगी। इसका भी दुष्प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है।
सल्फर डाइआक्साइड
इसकी 80 माइक्रोग्राम से अधिक मात्रा स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होती है। सामान्य तौर पर वाहनों से निकले धुएं के कारण यह 15 से 20 माइक्रोग्राम ही रहता है। दीवाली पर पटाखे जलाने से इस प्रदूषक की मात्रा 60 माइक्रोग्राम तक पहुंचती रही है।
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पर्यावरण में ये धूल के कण श्वास के जरिए साथ मानव फेफड़ों में प्रवेश करते हैं। वातावरण में दृश्यता पर भी असर डालते हैं। इसकी सीमा 60 माइक्रोग्राम होती है। दीपावली बीतने पर 150 से 160 दर्ज जाती रही है।
डॉक्टर शर्मा ने बताया कि मानव के कान 60 से 65 डेसीबल शोर को सहन कर सकते हैं। 90 डेसीबल से ज्यादा आवाज कानों के लिए बहुत ज्यादा घातक है। दीपावली पर यह शोर दोगुना हो जाता है।