सामाजिक पोल्यूशन भविष्य के लिए ख़तरा- मीणा

Sep 9, 2022 - 23:00
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सामाजिक पोल्यूशन भविष्य के लिए ख़तरा- मीणा

सामाजिक पोल्यूशन के बढ़ते पांव मानवीय समाज में फैलती अराजकता आपसी प्यार प्रेम सौहार्द भाई चारे को खत्म करने के साथ एक दुसरे समाज, परिवार, वर्ग, धर्म में  खाई पाटने का काम कर रहा, जो भविष्य के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। वैसे देखा जाए तो पौलयुशन हर क्षेत्र में है लेकिन यहां समाज में बढ़ते उस मानवीय ख़तरे  पौलयुशन का जिक्र किया जाना है जो धीरे-धीरे एक वैमनस्यता पैदा करने के साथ आपसी सौहार्द, भाई चारे को बिगाड़ने व  शांति को अशांति में बदलने में अपनी अहम भूमिका अदा कर रहा। जात पात, उच नीच, वर्ग, धर्म, के नामों से आये दिन देश, राज्यों, समाजों में कुछ ना कुछ होता रहा, साम्प्रदायिकता, लुट पाट, छेड़छाड़, अत्याचार चलतें रहे जो आज चर्म पर पहुंच गए। घटनाएं हमेशा घटतीं रही लेकिन सभी जगह सौहार्द के भाव दिखाई देते रहे।

मानव के विकास के साथ जब से उसमें स्वार्थ जगा तब से ये सभी होते आए।  द्वापर, त्रेता, सतयुग में भी यदि देखें स्वार्थ वश ये सब होते रहे लेकिन वहां   महिलाओं, बालिकाओं, बच्चों को स्नेह मिलता रहा, निर्दोषों को न्याय मिला, ग्राम व राज्य स्तर की शासकीय व्यवस्थाओं में बहुत सी खामियां होने के बाद भी लोग अपने आपकों  खुशहाल व सुरक्षित समझते थे। वर्ण- व्यवस्था , जात-पात, का जन्म द्वापर में हुआ। शासन प्रशासन के साथ वर्ण व्यवस्था के आधार पर कार्यों को बांटे और सभी अपनी अहम भूमिका अदा करते हुए अपने अपने कामों को बेखुबि के साथ निभातें, सब आपस में मिलकर रहते, किसी को कोई नहीं सताया। वर्तमान युग जिसे कलियुग कहां जाता इसमें भी यदि देखा जाए तो 1930 के पहले देश को  रजवाड़ों में बंटे हुए होने के साथ मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन, ब्रहामण, दलित, आदिवासी सभी एक साथ रहते अपने अपनी सामाजिक व्यवस्थाओं, कानूनों, नियमों को मानते हुए सोने की चिड़िया कहलाने के साथ विश्व गुरु के रूप में जानें जाने वाले भारत में आज सामाजिक सौहार्द, भाई चारे खत्म हो चुके हैं जबकि हजारों वर्षों से ऐ सभी एक साथ, एक आकाश के नीचे रहते आये। इतना होते हुए वर्तमान में  यहां दलित आदिवासी अपने को असुरक्षित महसूस करने लगा, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, ब्राह्मण आपस में लड़ने के साथ यहां की शासकीय व्यवस्था, आर्थिक विकास चरमरा गया आखिर क्यों?
1947 यानी देश आजादी से आज तक का इतिहासिक अध्यन सामाजिक, धार्मिक व देश के विकास को लेकर किया जाए तो यह देखने को मिलता है कि सबसे अधिक सामाजिक, मानवीय मूल्यों में गिरावट के साथ मानव का नैतिक पतन जो हुआ वह पिछले एक दशक में सर्वाधिक हुआ। संस्कार, संस्कृति, सम्बंध में 70 प्रतिशत गिरावट आई, हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई अपने को असुरक्षित महसूस करने लगें। दलित आदिवासी आए दिन अपने घर में रहते बली का बकरा बनाये जा रहें। महिला, बालिका, बच्चे सुरक्षित नही रहें। गरिबी, बेरोजगारी, भुखमरी, लुटपाट चरम सीमा पर पहुंच गई। आखिर यह क्यों? जातिवादी, ऊच नीच, क्यों? इन्हें बढ़ावा आखिर दें कोने रहा है? सोचने, समझने, विचार करने, निर्णायक स्थिति में पहुंचने का समय है।

भारत का संविधान सबसे बड़ा होने के साथ सभी समाजों, वर्गों, धर्मों की रक्षार्थ कानुनी व्यवस्थाएं हमें देता है, सभी प्रकार के अधिकार, कर्तव्यों के निर्वाह करने का पाठ पढ़ाता फिर भी यहां आज ग्राम, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर कोई भी धर्म, वर्ग, अपने आपकों सुरक्षित नही समझ पा रहा। आर्थिक स्थिति खराब हो रही है, बेरोजगारी बढ़ रही है। इन सभी की तरफ समाज, सरकार, न्यायपालिका व्यवस्थापिका को ध्यान देने की आवश्यकता है जिससे  स्नेह, प्रेम-भाव से अपनत्व,  मानवीय मूल्यों, सिद्धान्तों, नैतिकता, मानवता, संस्कृति, संस्कारों का पालन  हों सके कोई भी अवसाद में ना रहें। सभी का विकास हो, समान अवसर प्राप्त हो। मानव के गिरते नैतिक पतन से बचाने के साथ बढ़ते सामाजिक पोल्यूशन को रोका जा सके। ये लेखक के अपने निजी विचार है।
लेखक जाने माने समाज विज्ञानी व पर्यावरणविद् है।

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