प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के कार्मिकों का अनूठा काम: खाली पड़ी जमीन पर मियावाकी तकनीक से उगाया मिनी जंगल
भीलवाड़ा (राजस्थान/ राजकुमार गोयल) बारिश का सीजन शुरू होते ही पर्यावरण प्रेमी पौधरोपण के लिए तत्पर हो गए हैं। पर्यावरण संवर्धन का ऐसा ही संकल्प पीएचसी उपरेड़ा पर कार्यरत डॉ ऋतु चंदोलिया और अन्य कार्मिकों ने किया। उपरेड़ा सरपंच ईश्वर सिंह के सहयोग से आज से करीब एक वर्ष पहले जुलाई 2022 को मियावाकी तकनीक से सघन वन लगवाया। इसके तहत 300 छायादार, फलदार व फूलों के पौधे लगाये। एक साल में ही उस खाली जमीन पर सघन वन बन गया है। अपने गाँव कुंडिया खुर्द में 1000 से अधिक पौधे लगाने वाले पर्यावरण प्रेमी नर्सिंग ऑफिसर घनश्याम शर्मा ने बताया कि इस तकनीक से कम जगह और कम समय में जंगल तैयार हो रहे हैं। इस तकनीक से लगाये पौधों का विकास सामान्य लगाए गये पौधों से दुगुना होता है।
मियावाकी पद्धति में ऐसे किया जाता है पौधारोपण - शर्मा के अनुसार इस पद्धति में पौधों की ऊंचाई 60 से 80 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इसमें स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्रजातियों के 40 से 50 प्रतिशत पौधे लगाते हैं। उसके बाद लगभग इतने ही सामान्य नेटिव प्रजातियों के लगाते हैं। बाकी माइनर नेटिव प्रजातियों का चयन किया जाता है। मियावाकी पद्धति मिट्टी का निर्माण, देशी पौधों की विविधता का उपयोग, स्वस्थ पौधे उगाने और उन्हें एक साथ पास-पास रोपने से वन विकास को गति देती है। मियावाकी पद्धति देशी वनों को पुनर्स्थापित करने के लिए चरणबद्ध प्रक्रिया है।नर्सिंग अधिकारी नागेंद्र सिंह ने बताया कि इस वर्ष भी पीएचसी उपरेड़ा पर 300 पौधे लगाये जाएंगे, जिसकी तैयारी पूरी कर ली गई है। वृक्षारोपण कार्यक्रम में विशेष सहयोग डॉ हनुमान प्रसाद, डालचंद बैरवा, नागेंद्र सिंह राणावत, वैभव शर्मा, परमवीर सिंह, धर्मेन्द्र सिंह, लोकेंद्र सिंह और किशोर बैरवा का रहा।