घटते पेड़ बढ़ती चिंता जीना मुश्किल: प्राकृतिक संसाधनों पर स्वामित्व की होड़ बनी पर्यवारण की दुर्दशा का कारण

Nov 17, 2022 - 22:32
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घटते पेड़ बढ़ती चिंता जीना मुश्किल: प्राकृतिक संसाधनों पर स्वामित्व की होड़ बनी पर्यवारण की दुर्दशा का कारण

जी 20 के बाली शिखर सम्मेलन के समापन समारोह में भारत को अध्यक्षता की जिम्मेदारी सौंपने के साथ पी एम नरेंद्र मोदी ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों पर स्वामित्व की होड़ आज संघर्ष को जन्म दें रही है और पर्यावरण की दुर्दशा का मुख्य कारण बन गई हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सुरक्षित भविष्य के लिए ट्रस्टी शिप की अवधारणा ही समाधान है। जिससे  साफ़ होता है कि हम सभी को मिलकर पर्यावरण संरक्षण के कार्यों में सहयोग करना होगा।  पर्यावरण की महिमा को जानने, समझने के लिए आज-कल पत्र पत्रिकाओं, सोशल मीडिया,, सरकारों , समाज सभी बहुत जोर सोर से समझाने लगें साथ ही चिंतित दिखाई देने लगे लेकिन दो से तीन दशक तक इसे लेकर  पर्यावरण प्रेमी, शोधार्थी, जागरूक नागरिक  चिंतित रहे तथा सामलात देह जो वन एवं वन्य जीवों के साथ अवारा पशुओं, पक्षियों के आश्रय स्थल हुआं करते उन्हें बचाने, विकास के नाम औधोगीकरण की बढ़ती दौड़, मानव की प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के कपट भरें नैतिक पतन ने जीना दुर्लभ कर दिया। 
सरकार व पर्यावरण मंत्रालयों द्वारा ठोस कदम  उठाए गए होते, प्रदुषण मांनिटरिंग स्टेशनों द्वारा वायु गुणवत्ता सुचकांक की सही जानकारी देने पर सरकार द्वारा अमल किया जाता तब यह स्थिति देखने को नहीं मिलती। आज पर्यावरण से जुड़े सभी विभागों, सरकारों के साथ आम जन की नींद हराम हो रहीं हैं जो साफ देखने को मिल रहा है कि यह सब विकास के नाम पर बगैर सोचे समझे उठाएं गए कदमों का परिणाम है। 
एक्यूआई के आंकड़े आज छोटे बड़े सभी सहरो में ख़राब ही नहीं खतरनाक दिखाई दे रहें हैं जो वर्तमान के साथ साथ भविष्य के लिए बड़ा ख़तरा है, आक्सीजन की कमी मानव या स्थल पर रहने वाले जीवों के लिए ही नहीं बल्कि प्रदुषण बढ़ने से जल स्रोतों में एकत्रित जल में भी आक्सीजन की मात्रा कम होने से चिंता और अधिक बढ़ गई, इससे जलीय जीवों की अनेक प्रजातियां नष्ट होने के अनुमान लगाएं जा रहें हैं वहीं मानव में अस्थमा,क्षयरोग,  चर्मरोग, आंखों के रोग, खाज खुजली, एलर्जी, ज़ुकाम जैसी बिमारी फैलने लगी जो मानव के साथ जानवरों में भी दिखाई देना ख़तरे के संकेत हैं साथ ही नभ में विचरण करने वाले पक्षियों की अनेक प्रजातियां जो पर्यावरण संरक्षण में सहयोगी रहे खत्म हो गई वह भविष्य के लिए बड़ा ख़तरा है।
 पर्यावरणीय परिस्थितियों में बदलाव तथा अनुकूल परिस्थितियों को बनाएं रखने के लिए केन्द्रीय प्रदुषण बोर्ड, राज्य प्रदुषण बोर्ड, कमिशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट जैसे संस्थानों को अपनी अहम भुमिका निभाते हुए सरकार को सचेत करते हुऐ पर्यावरण के दुषमन बनें कल कारखानों पर प्रतिबंध लगाने के साथ कठोर क़दम उठाने चाहिए।एल पी एस विकास संस्थान के निदेशक व प्रकृति प्रेमी राम भरोस मीणा ने अपने निजी विचारों में सुरक्षित भविष्य के लिए बताया कि वनों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ते औधोगीकरण, खनन, परिवहन के संसाधनों, मानव द्वारा अनुपयोगी प्लास्टिक तथा कृषि फसलों के अपशिष्टों को जलाएं जाने से बढ़ते प्रदुषण व घटती वायु की गुणवत्ता से पुरे विश्व में वायु की गुणवत्ता को बनाएं रखने के लिए कार्य होना आवश्यक है इसके लिए वनों, वनस्पतियों के संरक्षण की महती आवश्यकता है, बढ़ते शहरीकरण में पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिए 15 प्रतिशत वन भूमि संरक्षित की जाए, औधोगीकरण व खनन पर प्रतिबंध लगाने के साथ अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जाए जिससे आने वाले समय में स्वच्छता सुंदरता के साथ सुरक्षित रह सके।

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