जीवनदायिनी धरती माँ और पर्यावरण संरक्षण -डॉ नीलम यादव

Jun 5, 2025 - 10:08
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जीवनदायिनी धरती माँ और पर्यावरण संरक्षण -डॉ नीलम यादव

बहरोड़ (मयंक जोशीला) धरती हमारी माँ है और प्रकृति मनुष्य को जीवन प्रदान करती है। धरती माँ न केवल हमें पृथ्वी का सुंदर आँगन देती है बल्कि वायु, जल, आकाश, अग्नि और धरती इन पंचतत्वों के रूप में हमारी प्रत्येक सांस को आधार भी देती हैं। यह हमें पेड़ों की छांव, नदियों का निर्मल जल, पर्वतों की स्थिरता और पशु-पक्षियों की मधुरता देती हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश आज धरती माँ मनुष्य की उपेक्षा और शोषण का शिकार है। मनुष्य विज्ञान और तकनीक के नाम पर प्रकृति का दोहन करते हुए आगे बढ़ रहा है। मनुष्य ने प्रगति के लिए पेड़ों को काटा, जंगलों को मिटाया, नदियों को गंदा किया और पहाड़ों को छलनी किया है। हाल ही की रिपोर्टों से पता चलता है कि हजारों की संख्या में पेड़ काटे गए हैं ताकि सड़कों को चौड़ा किया जा सके, शहरों को फैलाया जा सके और उद्योगों को बढ़ाया जा सके। इस अंधाधुंध कटाई का परिणाम यह हुआ है कि करोड़ों जानवरों का घर उजड़ गये है। वे पशु जो कभी जंगलों में स्वच्छंद विचरण करते थे, अब या तो शहरों की सीमाओं पर भटकते हैं या विलुप्त हो जाते हैं। पेड़-पौधे प्रतिदिन हमें ऑक्सीजन देते है, जलवायु को संतुलित करते है, ध्वनि प्रदूषण को कम करते है और पक्षियों व जीवों को आश्रय देते है। जब हम एक पेड़ काटते हैं, तो केवल डालियां नहीं कटतीं बल्कि उसके साथ जुड़ी एक पारिस्थितिक शृंखला भी टूट जाती है। प्रकृति और पारिस्थितिकी तंत्र परस्पर एक-दूसरे के पूरक है। प्रकृति केवल हमारे चारों ओर फैली हरियाली या नदियाँ नहीं हैं बल्कि यह एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है। एक ऐसा जीवंत तंत्र जिसमें पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, सूक्ष्म जीवाणु और स्वयं मनुष्य आपस में गहराई से जुड़े होते हैं। इस पारस्परिक निर्भरता की कड़ी में यदि एक भी जीव या तत्त्व कमजोर होता है, तो पूरा तंत्र असंतुलित हो जाता है। प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण ने इस जैव विविधता को गंभीर खतरे में डाल दिया है। जिस वन्यजीव को हम आज लुप्त होते देख रहे हैं, वह किसी न किसी चक्र में अन्य जीवों के जीवन का आधार होता है। एक छोटे से कीट की कमी से परागण प्रभावित होता है, परागण से फल-फूल नहीं लगते और फल-फूल ना लगें तो जीवों का भोजन संकट में आ जाता है। यह एक ऐसी श्रृंखला है जिसमें हर जीव की अपनी भूमिका है और इस पर चोट सीधे मानव अस्तित्व पर भी प्रभाव डालती है। आज यदि हम अपने आसपास झाँकें, तो देख सकते हैं कि नदियाँ सूख रही हैं, पक्षी विलुप्त हो रहे हैं, और जलवायु असंतुलित हो रही है। यह सब मनुष्य के स्वार्थ और लापरवाही का परिणाम है, जिसने प्राकृतिक संतुलन को परिवर्तित कर दिया है। पर्यावरण संरक्षण की पहली शिक्षा परिवार जहां माता-पिता अपने बच्चों में पेड़ लगाने का संस्कार डाले, बिजली और पानी की बचत करना सिखाये, प्लास्टिक मुक्त रहने का संदेश दे तो यह छोटे कदम आगे बड़े परिवर्तन का कारण बन सकते है। बच्चों में प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता और जिम्मेदारी तभी उत्पन्न होती है जब घर का वातावरण उसे सहयोग दे। इसी प्रकार शैक्षणिक संस्थान इस दिशा में अत्यंत प्रभावशाली भूमिका निभा सकते हैं। स्कूलों में पर्यावरण शिक्षा को केवल एक विषय न मानकर, इसे व्यवहार में उतारने की ज़रूरत है। वृक्षारोपण अभियान, वेस्ट मैनेजमेंट की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग, जल संरक्षण प्रोजेक्ट्स और प्रकृति से जुड़ने वाले कैंप जैसे प्रयास विद्यार्थियों के मन में प्रकृति के प्रति गहरी समझ और लगाव उत्पन्न कर सकते हैं। शिक्षक यदि बच्चों को प्रकृति के साथ जीने की कला सिखा दें, तो वे भविष्य में न केवल खुद जिम्मेदार नागरिक बनेंगे बल्कि दूसरों को भी जागरूक करेंगे। आज आवश्यकता है कि हम हर स्तर पर व्यक्ति, परिवार, समाज और संस्थानों में पर्यावरण को बचाने की संस्कृति विकसित करें। आज वैश्विक तापमान जिस गति से बढ़ रहा है, उसका प्रमुख कारण वनों की अंधाधुंध कटाई है। यही कारण है कि अब बारिश अनियमित हो गई है। गर्मी असहनीय होती जा रही है और जल संकट गंभीर रूप ले रहा है। प्रदूषण आसमान छू रहा है और नदियों का जल पीने योग्य नहीं रहा है। देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने एक पेड़ मां के नाम प्रेरणादायी अभियान प्रारंभ किया है। यह केवल एक वृक्षारोपण कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक भावनात्मक आंदोलन है। मां के नाम पर एक पेड़ लगाना, न केवल पर्यावरण को पुनर्जीवित करने का प्रयास है, बल्कि हमारी संस्कृति में निहित मातृप्रेम को प्रकृति से जोड़ने का एक पुनीत प्रयास भी है। यह अभियान सिखाता है कि प्रकृति की रक्षा केवल एक सामाजिक उत्तरदायित्व नहीं बल्कि एक व्यक्तिगत कर्तव्य है। आज हम पर्यावरण दिवस मना रहे हैं यह केवल भाषणों और कार्यक्रमों तक सीमित न रहें। मनुष्य को समझना होगा कि हर दिन पर्यावरण दिवस है। यह प्रण लेना होगा कि हम एक पेड़ अवश्य लगाएंगे, जल और ऊर्जा की बचत करेंगे, प्लास्टिक का उपयोग बंद करेंगे और प्रकृति के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाएंगे। याद रखे, जब आखिरी पेड़ कट जाएगा, आखिरी नदी सूख जाएगी और आखिरी मछली मर जाएगी, तब हमें समझ आएगा कि स्वार्थ से जीवन नहीं चलता। हमें यह समझना होगा कि प्रकृति हमसे कुछ नहीं मांगती, वह हमें जीने का आधार देती है। अब समय आ गया है कि हम भी उसे सम्मान दें, उसे संरक्षित रखे ताकि आने वाली पीढ़ियाँ का जीवन सुरक्षित रह सकें। प्रकृति हमारी मां है ओर मां से केवल लिया नही जाता कृतज्ञता से लौटाया भी जाता है। आइए इस पर्यावरण दिवस पर हम सब एकजुट होकर प्रकृति के संरक्षण का संकल्प लें। एक पेड़ माँ के नाम लगाकर आने वाली पीढ़ियों के जीवन को बचाएं। यही हमारी जीवनदायनी धरती माँ के प्रति कृतज्ञतापूर्वक सेवा होगी।

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