शूद्रों अतिशूद्रों के उत्थान को समर्पित सावित्रीबाई फुले -सैनी

Mar 9, 2025 - 18:56
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शूद्रों अतिशूद्रों के उत्थान को समर्पित सावित्रीबाई फुले -सैनी

उदयपुरवाटी (सुमेरसिंह राव) महात्मा फूले को महामानव बनाने में उनकी अर्धांगिनी सावित्रीबाई का क्रांतिकारी योगदान था. सावित्री बाई केवल उनकी पत्नी ही नहीं थी बल्कि महात्मा फूले द्वारा किये जा रहे सामाजिक परिवर्तन में भी उनका पूरा योगदान था. चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो बाल हत्या प्रतिबंध गृह का संचालन हो दुर्भिक्ष अकाल हो अनाज भंडारण हो प्लेग व हैजे  की बीमारी हो या सत्यशोधक समाज के  बकाया कार्यों को आगे बढ़ाना हो सभी में माता सावित्री बाई का अहम योगदान था उनके बिना महात्मा फूले का महामानव बनना सपने देखने जैसा था.
सावित्रीबाई अपने पति महात्मा फुले से शिक्षा ग्रहण कर अध्यापिका बनीं व बालिका स्कूल सहित अछूतों के मोहल्ले में स्कूल हो या मजदूरों के लिए रात्रि कालीन स्कूल खोलकर अछूतों बालिकाओं व मजदूरों को शिक्षित किया.
1863 में ज्योतिबाफुले ने बालहत्या प्रतिबन्ध गृह खोला जहां तलाकशुदा विधवा व प्रताड़ित महिलाओं को शरण दी जाती थी जिसका प्रबंधन सावित्रीबाई करती थी.इन्हीं में से काशीबाई नामक एक ब्राह्मण विधवा ने एक अवैध बच्चे को जन्म दिया जिसे फूले दम्पत्ति ने गोद लिया और उसे डाक्टर बनाया आगे जाकर उक्त डाक्टर यशवंत उनकी संपत्ति का मालिक बना.महाराष्ट्र में 1876 में दुर्भिक्ष पड़ा खाद्यान्न के अभाव में सैकड़ों लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे सत्यशोधक समाज द्वारा लगभग 2000 पीड़ितों को भोजन आदि की व्यवस्था की गई सावित्रीबाई फुले द्वारा पुणे के अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर यह कार्य किया गया.
महामानव के 1890 में महाप्रयाण के बाद शेष जीवन में माता सावित्रीबाई ने सत्यशोधक समाज द्वारा संचालित संस्थाओं का नेतृत्व किया.
1897 में महाराष्ट्र में हैजे की महामारी ने विकराल रूप धारण कर लिया था लोग गांव शहर छोड़कर जंगलों की ओर पलायन कर रहे थे माता सावित्रीबाई फुले ने अपने पुत्र डाक्टर यशवंत द्वारा संचालित दवाखाने में पीड़ितों का इलाज करवाया उसी दौरान सड़क पर महार समाज का एक युवक हैजे से ग्रस्त होकर पड़ा था जिसका इलाज करवाना तो दूर उसे छूना भी किसी ने उचित नहीं समझा माता सावित्री फूले उधर से गुज़र रही थी तो उसे अपने कन्धे पर लादा और पुत्र डाक्टर यशवंत के दवाखाने में उसका इलाज करवाया किन्तु इसी दौरान उनको भी हैजा की बीमारी लग गई और अंततः 10 मार्च 1897 को वे पंचतत्व में विलीन हो गईं.

  • लेखक मंगल चन्द सैनी पूर्व तहसीलदार 

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